पाली (राज)। राजस्थान के मारवाड़ अंचल में स्थित अरावली की गोद में आदिवासी बहुल पाली जिले क़ी दुआरिया नदी पर प्रस्तावित 'दुआरिया-बांध' परियोजना ३५ वर्षो के बाद भी अब तक सर्वेक्षण स्तर तक ही सिमित हैं। जबकि इस दौरान इसकी प्रस्तावित लागत १५ करोड़ से बढ़कर वर्त्तमान में १६५.८१ करोड़ रुपये हो गयी हैं।
प्रस्तावित दुआरिया बांध परियोजना के सर्वेक्षण का कार्य राजस्थान शासन के २ अक्तूबर १९६४ के आदेश के तहत प्रारंभ हुआ था और इसके सर्वेक्षण कार्य पर राज्य शासन अब तक सवा करोड़ रुपये से भी अधिक खर्च कर चूका हैं। अधिकारिक सूत्रों के अनुसार यह परियोजना गत ३५ वर्षो से लंबित हैं। राज्य शासन ने १९७५ में एक अलग जोधपुर संभाग राज्य के जल संसाधन विभाग के तहत खोला था लेकिन इसे १९८८ में ग्रामीण जल यांत्रिकी सेवा के तहत हस्तांतरित कर दिया गया। जल संसाधन विभाग के तहत अब केवल एक उपसंभाग ही रह गया हैं और उसे भी अमले की कमी के कारण लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग में मिला दिया गया हैं।
परियोजना के अनुसार राज्य शासन द्वारा दुआरिया बांध परियोजना को प्राथमिकता नहीं देने के कारण ही केंद्रीय जल आयोग द्वारा इस परियोजना की तकनिकी स्वीकृति तक नहीं मिल पायी हैं जबकि स्वीकृति मिलने के बाद भी इस इस परियोजना में लगभग दस वर्ष लगेंगे।
सूत्रों ने बताया की केंद्रीय जल आयोग को राज्य शासन द्वारा भेजे गये प्रतिवेदनो में परियोजना की लागत का प्राथमिक आकलन जून १९७७ को ३१.७५ करोड़ रुपये, १९८८ में ६२.८८ करोड़ रुपये, १९९५ में १२०.३० करोड़ रुपये था और अंतिम आकलन में इसकी लागत १७५.८१ करोड़ रुपये आंकी गयी हैं।
दुआरिया बांध परियोजना के लिए जंहा केंद्रीय जल आयोग से अनापति प्रमाण पत्र प्राप्त करने में सफलता नहीं मिली हैं वहीँ वन विभाग एवं पर्यावरण मंत्रालय से भी इसके स्वीकृति प्राप्त करना अधर में लटका हुआ हैं।
पाली जिला मुख्यालय से साठ कि.मी. और देसुरी पंचायत समिति से मात्र दस कि.मी. दूर सुमेर में प्रस्तावित दुआरिया बांध परियोजना के पक्के बांध क़ी ऊंचाई ४५ मीटर हैं कुल लम्बाई २८५.६१ मीटर हैं। इस परियोजना से पाली जिले क़ी ८५ हजार एकड़ और जोधपुर विभाग क़ी लगभग पांच सौ एकड़ से भी अधिक भूमि को वार्षिक सिंचाई सुविधा उपलब्ध होना प्रस्तावित हैं।
[राष्ट्रीय दैनिक 'नवभारत टाइम्स' मुंबई के १० अप्रेल २००० में प्रकाशित ''३५ साल में परियोजना कार्य सर्वेक्षण तक ही पहुँच पाया हैं'' से साभार]
प्रस्तावित दुआरिया बांध परियोजना के सर्वेक्षण का कार्य राजस्थान शासन के २ अक्तूबर १९६४ के आदेश के तहत प्रारंभ हुआ था और इसके सर्वेक्षण कार्य पर राज्य शासन अब तक सवा करोड़ रुपये से भी अधिक खर्च कर चूका हैं। अधिकारिक सूत्रों के अनुसार यह परियोजना गत ३५ वर्षो से लंबित हैं। राज्य शासन ने १९७५ में एक अलग जोधपुर संभाग राज्य के जल संसाधन विभाग के तहत खोला था लेकिन इसे १९८८ में ग्रामीण जल यांत्रिकी सेवा के तहत हस्तांतरित कर दिया गया। जल संसाधन विभाग के तहत अब केवल एक उपसंभाग ही रह गया हैं और उसे भी अमले की कमी के कारण लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग में मिला दिया गया हैं।
परियोजना के अनुसार राज्य शासन द्वारा दुआरिया बांध परियोजना को प्राथमिकता नहीं देने के कारण ही केंद्रीय जल आयोग द्वारा इस परियोजना की तकनिकी स्वीकृति तक नहीं मिल पायी हैं जबकि स्वीकृति मिलने के बाद भी इस इस परियोजना में लगभग दस वर्ष लगेंगे।
सूत्रों ने बताया की केंद्रीय जल आयोग को राज्य शासन द्वारा भेजे गये प्रतिवेदनो में परियोजना की लागत का प्राथमिक आकलन जून १९७७ को ३१.७५ करोड़ रुपये, १९८८ में ६२.८८ करोड़ रुपये, १९९५ में १२०.३० करोड़ रुपये था और अंतिम आकलन में इसकी लागत १७५.८१ करोड़ रुपये आंकी गयी हैं।
दुआरिया बांध परियोजना के लिए जंहा केंद्रीय जल आयोग से अनापति प्रमाण पत्र प्राप्त करने में सफलता नहीं मिली हैं वहीँ वन विभाग एवं पर्यावरण मंत्रालय से भी इसके स्वीकृति प्राप्त करना अधर में लटका हुआ हैं।
पाली जिला मुख्यालय से साठ कि.मी. और देसुरी पंचायत समिति से मात्र दस कि.मी. दूर सुमेर में प्रस्तावित दुआरिया बांध परियोजना के पक्के बांध क़ी ऊंचाई ४५ मीटर हैं कुल लम्बाई २८५.६१ मीटर हैं। इस परियोजना से पाली जिले क़ी ८५ हजार एकड़ और जोधपुर विभाग क़ी लगभग पांच सौ एकड़ से भी अधिक भूमि को वार्षिक सिंचाई सुविधा उपलब्ध होना प्रस्तावित हैं।
[राष्ट्रीय दैनिक 'नवभारत टाइम्स' मुंबई के १० अप्रेल २००० में प्रकाशित ''३५ साल में परियोजना कार्य सर्वेक्षण तक ही पहुँच पाया हैं'' से साभार]
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