Monday, November 9, 2009
चोरों की गिरफ्तारी के लिए दिया धरना
पुलिस व प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार ब्रज भाटा चौक स्थित सडक मार्ग के किनारे सुबह साढे नौ बजे से लोगों के पहुँचने का सिलसिला शुरू हो गया। दोपहर तक नगर पालिकाध्यक्ष दिलीप सोनी, उपाध्यक्ष घीसाराम जाट, प्रतिपक्ष नेता ओमप्रकाश बोहरा, पार्षद राकेश मेवाडा, नथाराम भाटी, माता महाकाली मन्दिर विकास समिति के मांगीलाल सोलंकी, मूलाराम घांची, सहित सैकडों लोग वहां एकत्रित हो गए। मौके पर भारी पुलिस बल तैनात करना पडा।
लोगों ने वहां धरना दिया और पुलिस की कार्रवाई पर रोष जताया। कांग्रेस नेता जयसिंह राजपुरोहित व धरनार्थियों ने बताया कि पुलिस ने तीन दिन में वारदात का खुलासा नहीं किया तो उग्र आंदोलन किया जाएगा। इसके बाद मन्दिर समिति के पदाघिकारी, कांग्रेस नेता व धरनार्थियों का प्रतिनिधिमण्डल थाने पहुंचा । उन्होंने सीओ बाली मोहनलाल खिन्नीवाल से आरोपियों का पता लगाने की मांग की। मारवाड जैन संघ मुंबई प्रमुख भरत सोलंकी ने सादडी के महाकाली, बागोल के चिंतामणि और सोजत के करणी माता मंदिर सहित जिले में हुई चोरी की कई वारदातों का पर्दाफाश नहीं करने के विरोध में पुलिस के खिलाफ धरना दे रहे विभिन्न संगठन एवं कार्यकर्ताओ का समर्थन किया हैं और सरकार से शीग्र ही क्षेत्र में हो रही इस तरह कि घटनाओ पर अंकुश लगाने एवं उपरोक्त मामलो की समुचित जाँच कराने की मांग की हैं ताकि जिले में लगातार हो रही चोरी की इन घटनाओ की साजिश का पर्दाफाश हो सके ।
Friday, November 6, 2009
Monday, November 2, 2009
राज ठाकरे की चेतावनी, सभी विधायक मराठी में लें शपथ
बंबई!!! आपने ध्यान दिया, बंबई, मुंबई नहीं। ऐसी ज़ुर्रत कैसे हो गई इरफान की? मुंबई में रहना है या नहीं? और वोडाफोन? उन्हें भी शहर में अपना बिज़नेस चलाना है या नहीं?
जबसे करण जौहर ने अपनी नई फिल्म ‘वेक-अप सिड’में बॉम्बे शब्द के इस्तेमाल के लिए माफी मांगी है, तब से मैं सोच रहा हूं कि क्या बंगाली अपनी भाषा और अपनी कल्चर से उतना प्यार नहीं करते जितना मराठी, खासकर राज ठाकरे का समर्थन करने वाले मराठी अपनी भाषा और संस्कृति से करते हैं? अगर करते हैं तो क्यों नहीं आज तक कोई गैर-बंगाली उनके प्यारे शहर कोलकाता को कलकत्ता कहने पर पिटा? क्यों नहीं अब तक वहां के अंग्रेज़ी अखबारों के दफ्तर जले जो अब भी अपने मास्टहेड पर Calcutta लिख रहे हैं?
हम यहां दिल्ली में देख ही रहे हैं। सभी लोग इसे दिल्ली ही पुकारते हैं मगर देखिए दिल्ली वालों ने इस शहर का क्या हाल कर दिया है। काश कि वे इसे अलग-अलग नामों से ही पुकारते लेकिन कम से कम हर रेडलाइट पर सिग्नल तो नहीं तोड़ते, हर मौके पर मां-बहन की गाली तो नहीं देते, आधी रात को कानफाड़ू संगीत तो नहीं बजाते।