Monday, November 2, 2009

राज ठाकरे की चेतावनी, सभी विधायक मराठी में लें शपथ

मुंबई. महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) के अध्यक्ष राज ठाकरे ने धमकी भरे अंदाज में गैर मराठी विधायकों से मराठी में ही शपथ लेने को कहा है। राज ने कहा है कि यदि उन्होंने ऐसा नहीं किया, तो एमएनएस विधायक क्या करेंगे, उसे पूरा विधानभवन देखेगा।एमएनएस के नवनिर्वाचित 13 विधायकों की बैठक के बाद राज ने सोमवार को एक प्रेस कान्फ्रेंस को संबोधित किया। इस मौके पर उन्होंने अपनी पार्टी के विधायक दल नेता के पद पर बाला नांदगांवकर की नियुक्ति की घोषणा भी की।
लगता है, राज ठाकरे टीवी नहीं देखते। अगर देखते होते तो ऐक्टर इरफान खान और वोडाफोन कंपनी अब तक कान पकड़े हुए उनसे माफी मांग रहे होते। आपने देखा होगा, इरफान खान वोडाफोन के एक टीवी ऐड में कई दिनों से कह रहे हैं, हमारे छोटे भाई साहब चले हैं शादी करने... अब लगाते रहो फोन दिल्ली, बंबई, कलकत्ता, चेन्नै...

बंबई!!! आपने ध्यान दिया, बंबई, मुंबई नहीं। ऐसी ज़ुर्रत कैसे हो गई इरफान की? मुंबई में रहना है या नहीं? और वोडाफोन? उन्हें भी शहर में अपना बिज़नेस चलाना है या नहीं?


जबसे करण जौहर ने अपनी नई फिल्म वेक-अप सिडमें बॉम्बे शब्द के इस्तेमाल के लिए माफी मांगी है, तब से मैं सोच रहा हूं कि क्या बंगाली अपनी भाषा और अपनी कल्चर से उतना प्यार नहीं करते जितना मराठी, खासकर राज ठाकरे का समर्थन करने वाले मराठी अपनी भाषा और संस्कृति से करते हैं? अगर करते हैं तो क्यों नहीं आज तक कोई गैर-बंगाली उनके प्यारे शहर कोलकाता को कलकत्ता कहने पर पिटा? क्यों नहीं अब तक वहां के अंग्रेज़ी अखबारों के दफ्तर जले जो अब भी अपने मास्टहेड पर Calcutta लिख रहे हैं?


मज़े की बात तो यह है कि जो राज ठाकरे मुंबई को बंबई या बॉम्बे कहने पर आग-बबूला हो जाते हैं, वही राज जब मध्य प्रदेश के इंदौर शहर की चर्चा करते होंगे तो उसे इंदूर बोलते होंगे क्योंकि मराठी में इंदौर के लिए यही शब्द इस्तेमाल होता है। क्यों भई? जब इंदौर के लोग उसे इंदौर बोलते हैं (सच कहें तो वे इंदोर बोलते हैं), तो राज ठाकरे उसे इंदूर बोलकर उसका अपमान क्यों करते हैं? बंगला भाषा मैं इंदूर का मतलब होता है चूहा। तो क्या राज ठाकरे इंदौरवासियों को चूहा बता रहे हैं?

यह अच्छी बात है कि इंदौरवासी ऐसा नहीं सोचते। सोचना भी नहीं चाहिए। न ही पटनावासियों को इस बात पर सर खपाना चाहिए कि राज ठाकरे मराठी में बोलते हुए उनके शहर को पाटणा क्यों कहते हैं या वड़ोदरा के निवासियों को इस बात का बुरा मानना चाहिए कि राज ठाकरे या अन्य मराठी उसे वडोदे बोलते हैं। तो जब मराठी में ही दूसरे शहरों के नाम बदले हुए हैं तो दूसरी भाषा में भी मुंबई का नाम बदला हुआ हो तो क्या प्रॉब्लम है!

अब विदेशी शहरों को ले लीजिए। रूस की राजधानी जिसका नाम मस्क्वा है, उसे हम उसके अंग्रेज़ी वर्ज़न मॉस्को के नाम से ही जानते हैं। मराठी में भी वही चलता है। तो क्या राज ठाकरे मराठीभाषियों से कहेंगे कि वे अब से उसे मस्क्वा ही बोलें। और इसी तरह दुनिया के हर शहर का नाम वहां के लोकल लोग जिस तरह से बोलते हैं, उसी तरह बोलें। बहुत मुश्किल हो जाएगा राज भाई इस तरह भाषा को बांधना।

राज ठाकरे को समझना चाहिए कि कोई अगर मुम्बई को बम्बई कहता है तो वह मराठियों का अपमान नहीं कर रहा है - ठीक वैसे ही जैसे आप या बाकी मराठीभाषी इंदौर को इंदूर बोलते है तो इंदौरवासियों का अपमान नहीं करते हो। ये नाम बरसों से चल रहे हैं और उन्हें बदलने में वक्त लगता है। मैं 30 साल मुंबई में रहा लेकिन आज भी बातचीत में बम्बई ही निकलता है, मुंबई नहीं।

तो राज भाई, शहरों के नामों को लोगों पर छोड दीजिए कि वे चाहें जैसे बोलें। इस बात पर ज़्यादा ज़ोर दें कि वे इन शहरों के साथ अच्छा सलूक करें। कोई अगर मुंबई को मुंबई ही बोले लेकिन जहां-तहां थूक दे, वह आपको प्यारा होगा या वह जो मुंबई को बंबई या बॉम्बे बोलता है लेकिन शहर की सफाई या नियम-कानून का पूरा ख्याल रखता है?


हम यहां दिल्ली में देख ही रहे हैं। सभी लोग इसे दिल्ली ही पुकारते हैं मगर देखिए दिल्ली वालों ने इस शहर का क्या हाल कर दिया है। काश कि वे इसे अलग-अलग नामों से ही पुकारते लेकिन कम से कम हर रेडलाइट पर सिग्नल तो नहीं तोड़ते, हर मौके पर मां-बहन की गाली तो नहीं देते, आधी रात को कानफाड़ू संगीत तो नहीं बजाते।


1 comment: