पाली जिले में जैन संस्कृति कितनी प्राचीन है जिसके प्रमाण हमें यहां के मंदिरों से तो मिलते ही हैं लेकिन कुछ ऐसे भी स्थान हैं जहां बिखरे हुए प्राचीन भग्नावशेष भी इसके साक्षी है कि हजारों वर्ष पूर्व भी यहां जैन संस्कृति अपने पूर्ण वैभव पर थी। ऐसा ही एक स्थान है कोट सोलंकियान। वर्तमान कोट गांव के पास बहने वाली नदी के पार अरावली की टेकरियों के बीच 200 फुट लम्बे चौड़े पत्थर से चुने गए विशाल चबूतरे पर विशाल मंदिर के खण्डहर जिसमें जैन मंदिरों के भग्नावशेष और विशाल बावड़ियों से ज्ञात होता है कि कभी यहां जैनों की बड़ी नगरी थी। इस नगरी को आसलगढ़ दुर्ग पाटण के नाम से पुकारा जाता था जिसमें पांच मंदिर और चार बावड़ियां थी। इसलिये इसको कोट पंचतीर्थी के नाम से आज भी पुकारा जाता है।
दुर्ग को कोट के नाम से भी कहा जाता है इसलिये इस अचल दुर्ग के ध्वंस हे जाने के बाद बसे नये गांव का नाम कोट रखा गया और नया गांव भी आज यहां आबाद है जो इसी गांव का एक भाग है। कोट गांव में भी एक जैन मंदिर बनवाया गया जिसमें चिन्तामणी पार्श्वनाथ की प्रतिमा स्थापित है, कोट के इस मंदिर का भी जीर्णोद्धार करवाकर उसे भव्य बनाया गया है। प्राचीन अचल दुर्ग की पंचतीर्थी के समान इसमें भी पांच मंदिर बनवाकर इसे पंचतीर्थी का रूप दिया गया है। कोट के नवनिर्मित मंदिर के दो द्वार रखे गये हैं जिनमें एक द्वार पूर्व दिशा में है जबकि मुख्य द्वार उत्तर दिशा में है। मंदिर में अचल दुर्ग के मंदिरों की प्राचीन प्रतिमाओं को यहां स्थापित किया गया है जिसमें एक प्रतिमा के बारे में कहा जाता है कि यह प्रतिमा दिन में अनेक भाव प्रदर्शित करती है। कोट गांव के पास अचल दुर्ग पाटण की पंचतीर्थी को दो हजार वर्ष पूर्व की बताई जाती है जो प्रकृति प्रकोप के कारण ध्वंस हुई थी मगर कुछ लोगों का मत यह भी है कि यह पंचतीर्थी भी सोमनाथ जाते हुये मोहम्मद गजनी की लूट तथा तोड़फोड़ की शिकार हुई है। इन पंचतीर्थी में से एक मंदिर का सभा मंडप और गर्भ गृह का कलापूर्ण द्वार आज भी वैसे ही विद्यमान है। इस स्थान का उत्खनन कार्य करवायें तो हजारों वर्ष पूर्व की संस्कृति की जानकारी मिल सकती है और गोडवाड़ क्षेत्र का दबा पड़ा इतिहास उजागर हो सकता है। यह गांव फुलाद-देसूरी मार्ग पर दिवेर (मेवाड़) जाने वाली सड़क पर स्थित है। यहां यात्रियों के लिये धर्मशाला की सुविधा प्राप्त है।
दुर्ग को कोट के नाम से भी कहा जाता है इसलिये इस अचल दुर्ग के ध्वंस हे जाने के बाद बसे नये गांव का नाम कोट रखा गया और नया गांव भी आज यहां आबाद है जो इसी गांव का एक भाग है। कोट गांव में भी एक जैन मंदिर बनवाया गया जिसमें चिन्तामणी पार्श्वनाथ की प्रतिमा स्थापित है, कोट के इस मंदिर का भी जीर्णोद्धार करवाकर उसे भव्य बनाया गया है। प्राचीन अचल दुर्ग की पंचतीर्थी के समान इसमें भी पांच मंदिर बनवाकर इसे पंचतीर्थी का रूप दिया गया है। कोट के नवनिर्मित मंदिर के दो द्वार रखे गये हैं जिनमें एक द्वार पूर्व दिशा में है जबकि मुख्य द्वार उत्तर दिशा में है। मंदिर में अचल दुर्ग के मंदिरों की प्राचीन प्रतिमाओं को यहां स्थापित किया गया है जिसमें एक प्रतिमा के बारे में कहा जाता है कि यह प्रतिमा दिन में अनेक भाव प्रदर्शित करती है। कोट गांव के पास अचल दुर्ग पाटण की पंचतीर्थी को दो हजार वर्ष पूर्व की बताई जाती है जो प्रकृति प्रकोप के कारण ध्वंस हुई थी मगर कुछ लोगों का मत यह भी है कि यह पंचतीर्थी भी सोमनाथ जाते हुये मोहम्मद गजनी की लूट तथा तोड़फोड़ की शिकार हुई है। इन पंचतीर्थी में से एक मंदिर का सभा मंडप और गर्भ गृह का कलापूर्ण द्वार आज भी वैसे ही विद्यमान है। इस स्थान का उत्खनन कार्य करवायें तो हजारों वर्ष पूर्व की संस्कृति की जानकारी मिल सकती है और गोडवाड़ क्षेत्र का दबा पड़ा इतिहास उजागर हो सकता है। यह गांव फुलाद-देसूरी मार्ग पर दिवेर (मेवाड़) जाने वाली सड़क पर स्थित है। यहां यात्रियों के लिये धर्मशाला की सुविधा प्राप्त है।