Monday, October 25, 2010

फुलाद-उदयपुर को जोड़ती रेल मार्ग की कहानी

भवन निर्माण की शालीन और अंग्रेजी शैली का प्रतीक हैं यह बंगला, जो अगर होता तो आज शायद बागोल का रेलवे स्टेशन के नाम से जाना जाता मगर सरकारी नीतियों में तबदीली के कारण इस गांव से गुजरने वाली रेलवे लाइन अरावली की पहाड़ियो के उस पर होती हुई उदयपुर ले जय गई, सो यह बंगला अब वन विभाग की चौकी के रूप में काम आ रह हैं । न केवल बागोल गांव बल्कि इस इलाके के हजारो बाशिंदों को यह पता नहीं होगा की यंहा से रेललाइन गुजरने वाली थी जो फुलाद से उदयपुर को जोड़ती होती । लेकिन अब यह मावली होते हुए उदयपुर जाती हैं, तो बीच में बागोल कंहा से आता। संवत १९७४ यानी बीसवी शताब्दी के दुसरे दशक में सन १९१० के आस पास यंहा से इस रेलमार्ग का प्रस्ताव था । रेलमार्ग के लिए पटरिया बिछाने से पहले की सारी तैयारिया पूरी कर ली गई थी सबुत के तौर पर इस इलाके की छोटी मोटी नदियों, नालो और ऐसे ही बालो पर बने समृद्ध पूल रेलमार्ग के प्रस्ताव की कहानिया कह रहे हैं। ये पुल इतने समृद्ध हैं कि बाद के बने कई जगहों के पुल टूटफुट गए, बह गए मगर वे आज भी जस के तस हैं। बागोल की उच्च माध्यमिक स्कूल के मुख्य द्वार के ठीक समक्ष स्थित प्रस्तावित रेलवे स्टेशन का यह भवन जिस तरह का बना हैं, वैसा गांव में कोई भी घर नहीं हैं। तब बंगले की शैली में बने इस भवन में अब जंगलात कर्मचारी बैठते हैं। रेल आने की कहानी सुनाते इस बंगले को याद करते गांव के बुजुर्ग आज भी आँखों में सुखद ख्वाब लेकर बताते हैं- 'रेल आती तो कितना अच्छा होता । बागोल का नक्षा ही बदल जाता'!

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