Monday, November 22, 2010

Police gun down Coimbatore killer

Arrested for abduction and murder of 2 minors, the 23-yr-old was trying to flee



The van driver who was recently arrested for kidnapping, torture and murder of two school children in Coimbatore was shot dead in an alleged police encounter on Tuesday morning. Two policemen were also injured in the encounter.



Mohankrishnan had allegedly snatched a cop’s revolver and opened fire. The victims – Muskan and Hrithik – with their parents

The incident took place when a police team was taking the accused Mohanakrishnan, 23, and his accomplice Manoharan, 23, in two separate police vans to the crime scene – where they had allegedly tortured and killed siblings Muskan Jain, 11, and her brother Hrithik Jain, 8, on October 29 – some 35 km away at Ankalakurichi near Pollachi, police said.

On the way, Mohanakrishnan – the school van driver who was the main accused in the case – snatched the revolver of police sub-inspector Jyothi and opened fire, injuring Jyothi and his colleague Muthumlai. Police inspector Annadurai, who was also travelling in the police vehicle, and Muthumalai opened retaliatory fire that critically injured Mohanakrishnan, who later died at Coimbatore Medical College Hospital. The two injured policemen were also hospitalised, and were out of danger, police added.

“Near Podanur, Mohanakrishnan grabbed Jyothi's revolver and demanded the van to be taken towards Tamil Nadu-Kerala border. When the cops resisted, Mohan opened fire.

Interestingly, Mohan was not handcuffed at the time of the incident.

The twin murder of Muskan and her brother, children of textile merchant Ranjit Kumar Jain
origin from Deuri,Pali Marwad,Rajasthan , had rocked Tamil Nadu. Muskan and Hrithik were abducted on October 28 near their house at Town Hall area in Coimbatore. While the body of Muskan was fished out from Parambikulam Aliyar Project (PAP) canal near a dam site about 77 km away from Coimbatore, Hrithik’s remains were found the next day from a lake in Tirupur district.



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Friday, November 12, 2010

Dam Development Project & Multinational Companies

देश की प्रगति में पानी की महत्वपूर्ण भूमिका
पानी किसी भी प्रदेश, शहर अथवा गांव के विकास के लिए मुलभुत आवश्यकता हैं ! मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, बंगलूरु अथवा कोई भी शहर को पानी मिलना अगर बंद हो जाए तो शहर में रहने वाले लोगो का शहर में रहना मुश्किल हो जाता हैं, ठीक वैसे ही गाँवो के विकास और खेती के लिए आवश्यक पानी का होना जरुरी हैं! पानी कुदरत की ओर से तो शहरों और गाँवो को समान रूप से मिलता हैं, पर शहर के लोगो को पेयजल की आपूर्ति के लिए शहरों के नजदीक जल संग्रह करने हेतु झीलों का निर्माण किया जाता हैं! पानी किसी भी शहर की लाइफ लाइन हैं वैसे ही गाँवो में खेती का उत्पादन पुरे प्रदेश अथवा देश की भुखमरी को मिटाने का एक मात्र जरिया हैं! आज देश की हजारो नदियों का लाखो करोडो गेलन पानी, जिसका समुचित संग्रह वितरण व्यवस्था नहीं होने के कारण व्यर्थ में ही बरबाद हो जाता हैं! अगर इस पुरे पानी की समुचित संग्रह वितरण व्यवस्था की जाए तो भारत पूरी दुनिया को खाध्य आपूर्ति करने सक्षम साबित हो सकता हैं ! अब तक हम बांध झीलों एवं नहरों के निर्माण के लिए सरकार पर निर्भर रहे पर सरकार की भी अपनी सीमाए होने के कारण जितना निर्माण होना चाहिये था उतना नहीं हो पाया पर अब सिर्फ सरकार के भरोसे बैठ कर काम चलने वाला नहीं हैं और इस तरह तो और भी सेकडो साल निकल जायेंगे!
महाराष्ट्र देश में सहकारिता का उदाहरण हैं अगर सहकारिता के माध्यम से इस काम को पुरे देश में अंजाम दिया जाए तो अगले पांच साल में देश का पूरा नक्षा ही बदल सकता हैं| पूंजी निवेश के लिए मलटीनेशनल एवं निजी क्षेत्र की कंपनियों के साथ भागीदारी के माध्यम से देश भर में बांधो एवं झीलों का निर्माण और जल आपूर्ति की व्यवस्था की जाए तो वो दिन दूर नहीं जब भारत दुनिया की सबसे बड़ी ताकत के रूप में उभर कर सामने आये! सरकार को चाहिये की वह इस कार्य हेतु योजनाये बनाये और मलटीनेशनल एवं निजी क्षेत्र की देशी कंपनियों को बांध एवं झीलों के निर्माण कार्य के आमंत्रित करे!

Sumer Duariya Bandh Dam Project

पाली (राज)। राजस्थान के मारवाड़ अंचल में स्थित अरावली की गोद में आदिवासी बहुल पाली जिले क़ी दुआरिया नदी पर प्रस्तावित 'दुआरिया-बांध' परियोजना ३५ वर्षो के बाद भी अब तक सर्वेक्षण स्तर तक ही सिमित हैं। जबकि इस दौरान इसकी प्रस्तावित लागत १५ करोड़ से बढ़कर वर्त्तमान में १६५.८१ करोड़ रुपये हो गयी हैं।
प्रस्तावित दुआरिया बांध परियोजना के सर्वेक्षण का कार्य राजस्थान शासन के २ अक्तूबर १९६४ के आदेश के तहत प्रारंभ हुआ था और इसके सर्वेक्षण कार्य पर राज्य शासन अब तक सवा करोड़ रुपये से भी अधिक खर्च कर चूका हैं। अधिकारिक सूत्रों के अनुसार यह परियोजना गत ३५ वर्षो से लंबित हैं। राज्य शासन ने १९७५ में एक अलग जोधपुर संभाग राज्य के जल संसाधन विभाग के तहत खोला था लेकिन इसे १९८८ में ग्रामीण जल यांत्रिकी सेवा के तहत हस्तांतरित कर दिया गया। जल संसाधन विभाग के तहत अब केवल एक उपसंभाग ही रह गया हैं और उसे भी अमले की कमी के कारण लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग में मिला दिया गया हैं।
परियोजना के अनुसार राज्य शासन द्वारा दुआरिया बांध परियोजना को प्राथमिकता नहीं देने के कारण ही केंद्रीय जल आयोग द्वारा इस परियोजना की तकनिकी स्वीकृति तक नहीं मिल पायी हैं जबकि स्वीकृति मिलने के बाद भी इस इस परियोजना में लगभग दस वर्ष लगेंगे।
सूत्रों ने बताया की केंद्रीय जल आयोग को राज्य शासन द्वारा भेजे गये प्रतिवेदनो में परियोजना की लागत का प्राथमिक आकलन जून १९७७ को ३१.७५ करोड़ रुपये, १९८८ में ६२.८८ करोड़ रुपये, १९९५ में १२०.३० करोड़ रुपये था और अंतिम आकलन में इसकी लागत १७५.८१ करोड़ रुपये आंकी गयी हैं।
दुआरिया बांध परियोजना के लिए जंहा केंद्रीय जल आयोग से अनापति प्रमाण पत्र प्राप्त करने में सफलता नहीं मिली हैं वहीँ वन विभाग एवं पर्यावरण मंत्रालय से भी इसके स्वीकृति प्राप्त करना अधर में लटका हुआ हैं।
पाली जिला मुख्यालय से साठ कि.मी. और देसुरी पंचायत समिति से मात्र दस कि.मी. दूर सुमेर में प्रस्तावित दुआरिया बांध परियोजना के पक्के बांध क़ी ऊंचाई ४५ मीटर हैं कुल लम्बाई २८५.६१ मीटर हैं। इस परियोजना से पाली जिले क़ी ८५ हजार एकड़ और जोधपुर विभाग क़ी लगभग पांच सौ एकड़ से भी अधिक भूमि को वार्षिक सिंचाई सुविधा उपलब्ध होना प्रस्तावित हैं।

[राष्ट्रीय दैनिक 'नवभारत टाइम्स' मुंबई के १० अप्रेल २००० में प्रकाशित ''३५ साल में परियोजना कार्य सर्वेक्षण तक ही पहुँच पाया हैं'' से साभार]

Monday, October 25, 2010

गोडवाड़ की धरोहर ; कोट सोलंकियान

पाली जिले में जैन संस्कृति कितनी प्राचीन है जिसके प्रमाण हमें यहां के मंदिरों से तो मिलते ही हैं लेकिन कुछ ऐसे भी स्थान हैं जहां बिखरे हुए प्राचीन भग्नावशेष भी इसके साक्षी है कि हजारों वर्ष पूर्व भी यहां जैन संस्कृति अपने पूर्ण वैभव पर थी। ऐसा ही एक स्थान है कोट सोलंकियान। वर्तमान कोट गांव के पास बहने वाली नदी के पार अरावली की टेकरियों के बीच 200 फुट लम्बे चौड़े पत्थर से चुने गए विशाल चबूतरे पर विशाल मंदिर के खण्डहर जिसमें जैन मंदिरों के भग्नावशेष और विशाल बावड़ियों से ज्ञात होता है कि कभी यहां जैनों की बड़ी नगरी थी। इस नगरी को आसलगढ़ दुर्ग पाटण के नाम से पुकारा जाता था जिसमें पांच मंदिर और चार बावड़ियां थी। इसलिये इसको कोट पंचतीर्थी के नाम से आज भी पुकारा जाता है।
दुर्ग को कोट के नाम से भी कहा जाता है इसलिये इस अचल दुर्ग के ध्वंस हे जाने के बाद बसे नये गांव का नाम कोट रखा गया और नया गांव भी आज यहां आबाद है जो इसी गांव का एक भाग है। कोट गांव में भी एक जैन मंदिर बनवाया गया जिसमें चिन्तामणी पार्श्वनाथ की प्रतिमा स्थापित है, कोट के इस मंदिर का भी जीर्णोद्धार करवाकर उसे भव्य बनाया गया है। प्राचीन अचल दुर्ग की पंचतीर्थी के समान इसमें भी पांच मंदिर बनवाकर इसे पंचतीर्थी का रूप दिया गया है। कोट के नवनिर्मित मंदिर के दो द्वार रखे गये हैं जिनमें एक द्वार पूर्व दिशा में है जबकि मुख्य द्वार उत्तर दिशा में है। मंदिर में अचल दुर्ग के मंदिरों की प्राचीन प्रतिमाओं को यहां स्थापित किया गया है जिसमें एक प्रतिमा के बारे में कहा जाता है कि यह प्रतिमा दिन में अनेक भाव प्रदर्शित करती है। कोट गांव के पास अचल दुर्ग पाटण की पंचतीर्थी को दो हजार वर्ष पूर्व की बताई जाती है जो प्रकृति प्रकोप के कारण ध्वंस हुई थी मगर कुछ लोगों का मत यह भी है कि यह पंचतीर्थी भी सोमनाथ जाते हुये मोहम्मद गजनी की लूट तथा तोड़फोड़ की शिकार हुई है। इन पंचतीर्थी में से एक मंदिर का सभा मंडप और गर्भ गृह का कलापूर्ण द्वार आज भी वैसे ही विद्यमान है। इस स्थान का उत्खनन कार्य करवायें तो हजारों वर्ष पूर्व की संस्कृति की जानकारी मिल सकती है और गोडवाड़ क्षेत्र का दबा पड़ा इतिहास उजागर हो सकता है। यह गांव फुलाद-देसूरी मार्ग पर दिवेर (मेवाड़) जाने वाली सड़क पर स्थित है। यहां यात्रियों के लिये धर्मशाला की सुविधा प्राप्त है।

फुलाद-उदयपुर को जोड़ती रेल मार्ग की कहानी

भवन निर्माण की शालीन और अंग्रेजी शैली का प्रतीक हैं यह बंगला, जो अगर होता तो आज शायद बागोल का रेलवे स्टेशन के नाम से जाना जाता मगर सरकारी नीतियों में तबदीली के कारण इस गांव से गुजरने वाली रेलवे लाइन अरावली की पहाड़ियो के उस पर होती हुई उदयपुर ले जय गई, सो यह बंगला अब वन विभाग की चौकी के रूप में काम आ रह हैं । न केवल बागोल गांव बल्कि इस इलाके के हजारो बाशिंदों को यह पता नहीं होगा की यंहा से रेललाइन गुजरने वाली थी जो फुलाद से उदयपुर को जोड़ती होती । लेकिन अब यह मावली होते हुए उदयपुर जाती हैं, तो बीच में बागोल कंहा से आता। संवत १९७४ यानी बीसवी शताब्दी के दुसरे दशक में सन १९१० के आस पास यंहा से इस रेलमार्ग का प्रस्ताव था । रेलमार्ग के लिए पटरिया बिछाने से पहले की सारी तैयारिया पूरी कर ली गई थी सबुत के तौर पर इस इलाके की छोटी मोटी नदियों, नालो और ऐसे ही बालो पर बने समृद्ध पूल रेलमार्ग के प्रस्ताव की कहानिया कह रहे हैं। ये पुल इतने समृद्ध हैं कि बाद के बने कई जगहों के पुल टूटफुट गए, बह गए मगर वे आज भी जस के तस हैं। बागोल की उच्च माध्यमिक स्कूल के मुख्य द्वार के ठीक समक्ष स्थित प्रस्तावित रेलवे स्टेशन का यह भवन जिस तरह का बना हैं, वैसा गांव में कोई भी घर नहीं हैं। तब बंगले की शैली में बने इस भवन में अब जंगलात कर्मचारी बैठते हैं। रेल आने की कहानी सुनाते इस बंगले को याद करते गांव के बुजुर्ग आज भी आँखों में सुखद ख्वाब लेकर बताते हैं- 'रेल आती तो कितना अच्छा होता । बागोल का नक्षा ही बदल जाता'!

Sunday, October 24, 2010

इतिहास के आईने में बागोल की गाथा

आठवी सदी के आरम्भ में राजपूताने में एक नए युग का सूत्रपात हुआ। इस काल के सबसे मजबूत राजवंश मरुधर और गुर्जर प्रदेश के प्रतिहार, मेवाड के गुहिलोत, चितौड और कोटा के मौर्य, परमार, चौहान, नाग और चापा थे परिवर्तित काल में भारत पर मुग़ल शासन के बाद अंग्रेजी राज से पूर्व राजपुताने की ऐतिहासिक थाती में परिवर्तन हुआ और एक नई संस्कृति का उदय हुआ, जो ठाकुर शाही की थी। राजा के नीचे इलाकाई और गाँव के ठाकुर। यह परंपरा भी आजादी के साथ सन 1947 के बाद ख़त्म हो गई। सन1952 में राजपुताना से राजस्थान का उदय हुआ, उसी राजपूताने की मारवाड़ रियासत और मेवाड रियासत के बीच झूलता रहा हैं पाली जिले का गाँव-बागोल।

बागोल का इतिहास 500 साल पुराना हैं बागोल के संस्थापको के वंशजो के मुताबिक सन1515 में यानि संवत 1572 में इसकी स्थापना की जानकारी हैं। जानकारी के अनुसार विक्रम संवत 1232 में वरसिंह चौहान ने जब हतुन्डिया के सिंगा राठोड को मारकर बेडा के 42 गाँवो पर अधिकार कर लिया था, तब मेवाड में रूपनगर के ठाकुरों ने देसुरी और आस पास के गाँवो की यात्रा की थी। उसमे अन्य गाँवो का तो जिक्र हैं पर बागोल का कंही जिक्र नहीं हैं। चालीसा चौहानों के बडुओं की बहियों में स्पष्ट हैं की संवत1080 (सन 1023) में नाडोल में रामपाल चौहान का राज था मगर बाद में 'बहेड़ा' (बेडा) के राव कर्मसिंह के ज़माने में विक्रम संवत1336 में मेवाड के सिसोदिया सद्रसिंह के हुए युद्ध के डेढ़ सौ साल बाद की घटनाओ में नव स्थापित गांव के रूप में 'बाघोल' ( बागोल) का कंही जिक्र हैं इससे माना जाता हैं की बागोल सोलहवी शताब्दी की शुरुआत में ही बसा होगा
इतिहास के जानकार लोगो का कहना हैं की बागोल के संस्थापक सोलंकी परिवार के पूर्वज ठाकुर मेवाड के रूपनगर घराने से देसुरी आए,वंहा से डायलाना गए। रूपनगर और डायलाना का सफ़र उनका डेढ़ सौ साल से भी ज्यादा का रहा, डायलाना से निकले ठाकुर विरमदेव सोलंकी ने वरदिया गांव बसाया। वंहा जब भाइयो में सम्पति का बंटवारा हुआ, तो आज जंहा बागोल हैं, वह जमीन जिस भाई के हिस्से में आई उनका नाम था- केसुदास। केसुदास अपने भाइयो में छोटे थे वे एक बार वरदिया से शिकार पर निकले। सुमेर के आस पास जंगलो में जब वे विचर रहे थे, तो उनकी निगाह अचानक एक चमत्कारी द्रश्य पर पड़ी। अपने घोड़े को रोककर ठाकुर केसुदास वह नजारा हैरतभरी आँखों से देखने लगे। वे देख रहे थे कि एक मामूली सी बकरी बाघ से लड़ रही थी। बाघ उस बकरी के बच्चे को उठाकर ज्योंही मुडा तो बकरी ने लपककर सामने दोनों पैरो पर खड़ी रहकर आगे के दोनों पैर बाघ की आँखों में गडा दिए, पूरी ताकत से बकरी ने बाघ की दोनों आँखे फोड़ डाली। बाघ कराह उठा और बकरी के बच्चे को छोड़ दिया। छोटे ठाकुर केसुदास सोलंकी को लगा की इस जमीन में जरुर कोई देवी शक्ति हैं। यह जमीन उनके हिस्से में तो आई हुई थी ही, सो उनके मन में आया की क्यों यंही अपनी जागीर बसाई जाए। वैसे भी, वरदिया में तो उन्हें ठाकुर की पदवी हासिल होनी ही नहीं थी, सो उसी दिन 'छुरी' रोपकर उन्होंने अपने ठिकाने की स्थापना की। इतिहास के जानकारों का मत हैं की तब अपनी शासनधारा की शुरुआत करने की परम्परा 'छूरी' रोपकर ही हुआ करती थी।
मगर, इसके अलावा एक और भी कथा सूनने में आती हैं जो इस प्रकार हैं - 'वरदिया के ठाकुर जब अरावली के जंगलो में शिकार पर आये तो उन्होंने देखा की एक बकरी और बाघ आपस में खेल रहे हैं। तो उन्हें लगा की जिस भूमि में इतनी शक्ति हो कि बाघ की ताकत को भी बकरी जैसा ममतामयी बना डाले, या कमजोर बकरी में भी बाघ के साथ खेलने की हिम्मत पैदा कर दे तो उनके मन में उस भूमि पर अपना राज स्थापित करने की बात आई और उन्होंने जो गाँव स्थापित किया, वह बागोल बना।' घट्नाए दोनों करीब-करीब एकसी ही हैं पहली में लड़ने का वाकया हैं तो दूसरी में आपसी खेल की बात मगर बाघ और बकरी, शिकार और साहस दोनों में समान रूप से आता हैं। कंही कंही साम्य रखने वाली इन घटनाओ के भीतर ही 'बाघोल' (अब बागोल) नाम की सच्चाई छिपी हुई हैं करीब पांच सौ वर्ष पुरानी यह घटना आज भी लोगो को अपने गाँव के शौर्य, साहस और दया की प्रष्टभूमि वाले नाम-'बाघोल' की सार्थकता दर्शाती हैं बागोल की रावलापोल, जो गाँव के बीचो-बीच स्थित हैं, के बाहर नीम के पेड़ के नीचे 'छुरी रोपण स्थान' पर आज भी पांच सौ वर्ष पुराने इस इतिहास के अवशेष मौजूद हैं। बागोल में यही एक मात्र ऐतिहासिक अवशेष नहीं हैं। रावलापोल के भीतर माता भवानी जिसे 'जोगमाया' भी कहा जाता हैं, उनका स्थान भी सदियों पुराना हैं, जिसे स्थापना काल का माना जाता हैं

Sunday, October 17, 2010

श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ भगवान की अदभुत मूर्ति

राजस्थान के ऐतिहासिक मंदिरों में विशेष स्थान रखने वाला बागोल पुनर्निर्मित मंदिर, दुनिया भर में बागोल ही एकमात्र ऐसा ज्ञात स्थान हैं जंहा श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ भगवान की अदभुत मूर्ति हैं अगर इसे गौर से देखे तो दुनिया भर की भगवान पार्श्वनाथ की मूर्तियों से यह मूर्ति कई मायनों में भिन्न नजर आएगी लेकिन सबसे प्रमुख और स्पष्ट भिन्नता यह हैं की मूर्ति के दोनों कंधो से ऊपर उठे हुए दो नाग फन काढे हुए हैं जो पीछे खड़े शेषनाग के फन को सहारा देते हुए लगते हैं सामान्य तौर पर जो भी मुर्तिया देखी गई हैं उनमे भगवान पार्स्वनाथ के छत्र बने शेषनाग को अकेले ही दर्शाया गया हैं जैन ग्रंथो में भी ऐसी विशिष्ठ मूर्ति का कंही उल्लेख नहीं हैं बागोल में साठ साल पहले प्रतिष्टित यह मूर्ति आठवी या नौवी यानि कम से कम अग्यारह या बारह्सो वर्ष पुराणी प्राचीन और चमत्कारिक मूर्ति हैं ।शुद्ध सोने के रंग में शोभायमान पुनर्निर्मित यह स्वर्ण मंदिर आज राजस्थान के इतिहास में एकमात्र मंदिर हैं जो श्री स्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ द्वारा पुनः प्रतिष्ठापित मंदिर हैं

Thursday, October 14, 2010

NO JAIN TEMPLE WAS BURNT IN KASHMIR: OFFICIALS

NO JAIN TEMPLE WAS BURNT IN KASHMIR: OFFICIALS

The temporary structure housing a Jain temple in a local hotel was not burnt by a mob but was dismantled as a local hotel's contract with a Mumbai-based travel agency which built the structure on its premises has not been renewed. In the wake of reports in newspapers around India that the only Jain temple in Kashmir had been burnt by mobs leading the ongoing protests in the Valley, hotel and State officials told that no such incident had taken place. According to Ghulam Mohiuddin, manager of Silver Star Hotel in Lasjan on the outskirts of Srinagar, the temporary structure was built as per contract with Gem Tours and Travels, a Mumbai-based travel agency, which wanted to provide a place where Jain tourists from other parts of India could worship while visiting Kashmir. But the three-year contract ended and was not extended, so the structure was also dismantled, he said. The temple was established to attract Jain tourists. “As the situation in the Valley worsened and the tourist inflow declined, the contract was not renewed and we thought there is no need for this,” he added. The 8x8 pre-fabricated structure was dismantled in the presence of the priest, Hans Raj, on August 10.

Mr. Mohiuddin categorically denied that the temple was burnt or destroyed by a mob. “This is just not true. It is a fact that a large mob passed through this area also but no one entered our premises so the question of touching the temple does not arise,” he told The Hindu. Before the hotel management decided to remove the structure, the owners of the travel agency were contacted through the priest Hans Raj, who hails from Uttar Pradesh. “The idols were removed and properly handed over to them when they arrived in Srinagar the next day,” he said, adding the rumours seemed to be a conspiracy to spread hatred against Kashmiris. Deputy Commissioner (Srinagar) Meraj Kakroo also rubbished reports about the Jain temple being attacked. “The report about the burning of the temple is baseless and mischievous,” he said. He added that no proper temple existed and “as per our information, it was an internal arrangement made by the hotel owners.” Members of the community said there is, in fact, no Jain temple in Kashmir. While there were 40-odd Jain families living in the Valley prior to militancy, only five have stayed back. “There is no Jain temple here, though a family has set up one in their house,” Amit Jain, a businessman, said. Doshi family, which built the temple, flew in to Srinagar the day after the temple was dismantled and packed the idols in cardboard boxes and returned to Sabarmati.

Ahimsa Foundation feels that Jain Samaj should restrain in expressing its reactions and views in delicate religious and political matters affecting the feelings of other communities.

Sunday, September 5, 2010

Ashtapad Tirth Parvat


Ashtapad Tirth Parvat trekked by Sri Sukanraj Multanmalji Solanki Bagol on 23rd July 2010 and took a real & historical photograph...Never ever in the history of Jain Samaj.

Saturday, February 13, 2010

मंदिर ट्रस्टो के चुनाव लोकतान्त्रिक प्रणाली से कराने की मांग

मुंबई | मारवाड़ जैन संघ मुंबई प्रमुख भरत सोलंकी ने राजस्थान के देवस्थान विभाग आयुक्त एवं पाली जिला कलेक्टर को पत्र लिख कर जिले के अनेक गाँवो में मंदिरों के प्रबंधन समितिओ का चुनाव लोकतान्त्रिक प्रणाली से कराने एवं देवस्थान विभाग में पंजीकृत करने के लिए उचित कार्यवाही करने की मांग की हैं | मंदिर ट्रस्ट व्यवस्थापन समितियो का देवस्थान विभाग में पंजीकरण नहीं होने के कारण कई गावो में चढ़ावे की बोलियो की करोडो रुपये की रकम के हिसाब किताब में पारदर्शिता नहीं होने से धन का सदुपयोग नहीं हो रहा हैं और भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता हैं | प्रवासी श्रद्धालु अपनी मेहनत की कमाई से अर्जित धन से गाँव में स्वयं का मकान बनवाकर एवं देवस्थान में चढ़ावा लेकर अपनी प्रतिष्ठा बढाने का प्रयास करते और फिर दक्षिण भारत की ओर पलायन कर जाते हैं पीछे देवस्थान पेढ़ी के तथाकतित स्वयंभू ट्रस्टी रकम को आपस में बाँट लेते हैं इस प्रकार विभिन्न मंदिरों के करोडो रुपये की हेरा फेरी होती हैं जिसकी जाँच करने वाला कोई नहीं हैं |
ज्ञात रहे सरकार का ध्यान आकर्षित करने पिछले मई महीने में एक महोत्सव समारोह के दौरान सोलंकी ने बागोल में तीन दिन का आमरण अनसन किया था जिसके परिणामस्वरुप राज्य सरकार के प्रशाशनिक सुधार विभाग उपशासन सचिव द्वारा जारी आदेश के अनुसार सभी मंदिरों को सरकारी नियंत्रण में शामिल करने की तैयारी कर दी हैं जिसके तहत राज्य के ग्रामीण अंचलो में स्थित राजकीय विज्ञापित मंदिरों के अतिरिक्त सभी अराजकीय मंदिरों, धार्मिक पूजा स्थलों के प्रबंधन एवं व्यवस्था के लिए प्रत्येक तहसील मुख्यालय पर स्थायी समिति का गठन कर लिया गया हैं | समिति अध्यक्ष उपखंड अधिकारी होंगे तथा उपाध्यक्ष तहसीलदार होंगे परन्तु ग्रामीण स्तर पर मंदिर ट्रस्टो के लोकतान्त्रिक प्रणाली से समितियो के चुनाव कराने एवं ट्रस्ट पंजीकरण के लिए बाध्य करने के बारे में अभी भी कोई विशेष तैयारी सरकार ने नहीं की हैं |
संघ प्रमुख भरत सोलंकी ने राजस्थान के सभी देवस्थान पेढ़ीयो की जाँच कराने के साथ ट्रस्टो के चुनाव शीघ्र ही कराने की मांग की हैं ताकि धार्मिक श्रद्धालुओ की भावनाओ का विश्वास कायम रहे और देवस्थान के धन का सदुपयोग हो सके |

Monday, February 1, 2010

पाली पंचायत चुनाव तैयारी पूरी

पाली। पंचायत चुनाव के तीसरे व अंतिम चरण में जिला परिषद की 12 व तीन पंचायत समितियों मारवाड जंक्शन, सुमेरपुर व जैतारण की 67 सीटों के लिए मतदान मंगलवार सुबह आठ से शाम पांच बजे तक होगा। तीसरा चरण पूरा होने के बाद जिला परिषद की सभी 33 व दस पंचायत समितियों की 192 सीटों की मतगणना 8 फरवरी को जिला मुख्यालय पर होगी व इसके बाद परिणाम घोषित कर दिए जाएंगे।
मतदाता 3.82 लाख, मतदान केंद्र 421:जिला परिषद की मारवाड जंक्शन समिति क्षेत्र की 5, सुमेरपुर क्षेत्र की 3 व जैतारण क्षेत्र की 4 सीटों के लिए मतदान तीसरे चरण में होना है। इसी तरह मारवाड जंक्शन पंचायत समिति की 25, सुमेरपुर की 19 व जैतारण की 23 सीटों के लिए मतदान होना है। इस चरण में 1,85,195 महिला मतदाताओं समेत कुल 3 लाख 82 हजार 337 मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकेंगे। इनके लिए 421 मतदान केंद्र स्थापित किए गए हैं।

पंच-सरपंच के नामांकन कल:तीसरे चरण में तीन समिति क्षेत्र के 109 सरपंच व 1293 वार्डपंच पदों के लिए 3 फरवरी को सुबह 8 से 11 बजे तक नामांकन दाखिल किए जा सकेंगे। मतदान 4 फरवरी को सुबह आठ से शाम पांच बजे तक होगा। मतदान के बाद मतगणना कर परिणाम घोषित कर दिए जाएंगे।
सुमेरपुर। जिला परिषद व पंचायत समिति सदस्यों के मंगलवार को होने वाले चुनाव को लेकर 120 मतदान केन्द्र स्थापित किए गए हैं। पंचायत समिति के 19 और जिला परिषद के तीन सदस्यों के चुनाव में एक लाख 13 हजार 714 मतदाता अपने मताघिकार का उपयोग करेंगे। रिटर्निग अघिकारी नरेन्द्रकुमार बंसल ने बताया कि तृतीय चरण के चुनाव को लेकर सारी तैयारियां पूरी कर ली गई है।
शांतिपूर्ण चुनाव को लेकर सेक्टर मजिस्ट्रेट व जोनल मजिस्ट्रेट लगाए गए हैं। मतदान को लेकर दस संवेदनशील व चार अति संवेदनशील मतदान केन्द्र चिह्नित किए गए हैं। संवेदनशील के रूप में भारून्दा, नेतरा, ढोला, एरनपुरा, पोमावा, खिमाडा, कोसेलाव, बसंत, पावा और नोवी को चिन्हित किया गया। वहीं साण्डेराव, सिन्दरू, बलाना व चाणोद को अतिसंवेदनशील केंद्र घोषित किया गया है।
मारवाड जंक्शन। पंचायतीराज संस्थाओं के मंगलवार को होने वाले चुनाव में मारवाड जंक्शन पंचायत समिति क्षेत्र में एक लाख 33 हजार 435 मतदाता अपने मताधिकार का उपयोग कर जनप्रतिनिधि चुनेंगे। जिला परिषद सदस्यों व पंचायत समिति सदस्यों के चुनाव को लेकर कुल 149 मतदान के न्द्र बनाए गए हैं। कुल एक लाख 33 हजार 435 मतदाताओं में से 26 हजार 877 अनुसूचित जाति एवं तीन हजार 434 अनुसूचित जाति के मतदाता है।
जैतारण। पंचायत समिति क्षेत्र की 33 पंचायतों में 33 मण्डल सदस्य एवं चार जिला परिषद सदस्यों के लिए चुनाव होंगे। इसके लिए एक लाख 34 हजार 501 मतदाता अपने मताघिकार का उपयोग करेंगे। इनमें 68 हजार 953 पुरूष व 65 हजार 548 महिलाएं मतदान करेंगी।
जैतारण। पंचायतीराज संस्थाओं के चुनाव की सभी तैयारियां पूर्ण कर ली गई। सोमवार को मतदान दल केंद्रों पर पहुंचे। इससे पहले उपखण्ड कार्यालय में जेडओ व सेक्टर मजिस्टे्रटों की बैठक आयोजित हुई। इसमें शांतिपूर्ण मतदान कराने के संबंध में निर्देश दिए गए।
अति संवेदनशील मतदान केन्द्र फालका, डिगरना, बलुन्दा, पाटवा, निमाज, बेडकलां, रास, राबडियावास, भुम्बलिया, कुडकी, लाम्बिया, आन्दपुरकालू में सशस्त्र आरएसी के जवान तैनात रहेंगे। रिटर्निüग अघिकारी हरफूलसिंह यादव के अनुसार चार एरिया मजिस्ट्रेट पूरे दिन क्षेत्र मे मौजूद रहेंगे।
मारवाड जंक्शन। प्रशासन ने पंचायतीराज संस्थाओं के तीसरे चरण के चुनाव सम्पन्न करवाने के लिए तैयारियां पूरी कर ली है। पुलिस थाने में सोमवार को अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक एवं पंचायत समिति चुनाव प्रभारी प्रताप सिंह के नेतृत्व में पुलिस अघिकारियों की बैठक आयोजित हुई।
इसमें शांतिपूर्ण, निष्पक्ष, भय रहित चुनाव सम्पन्न करवाने के निर्देश दिए गए। इसमें पुलिस उप अधीक्षक सोजत सुनिल गुप्ता, पी.डी.धानिया, थाना प्रभारी खलील अहमद आदि ने भाग लिया।
रायपुर मारवाड। पंचायतराज संस्थाओं के द्वितीय चरण के चुनाव सम्पन्न करवाने के बाद मतदान दलों ने तृतीय चरण के चुनाव के लिए जैतारण की ओर रूख कर दिया। वे बसों के जरिए मतदान केंद्रों पर पहुंचे।
पंचायत समिति में लगा मेला:पंच-सरपंच चुनाव के बाद चुनाव सामग्री तथा संबंधित दस्तावेज जमा कराने को पंचायत समिति में मतदान दलों का मेला सा लगा रहा। उन्होंने कतार में खडे रहकर मतदान सामग्री जमा करवाई। वहीं एक छोर से मतदान कार्मिकों ने तृतीय चरण की मतदान सामग्री प्राप्त की।
जिला मुख्यालय पहुंचा रिकॉर्ड: द्वितीय चरण का चुनावी रिकॉर्ड सोमवार शाम बाद अतिरिक्त जिला निर्वाचन अधिकारी अरूण पुरोहित के नेतृत्व में जिला मुख्यालय के लिए रवाना किया गया। इधर पुरोहित ने तृतीय चरण के चुनाव के लिए जैतारण रवाना हुए दलों को नियमों की पालना के निर्देश दिए।
बूथों पर पहुंची मतदान टोलियां, तखतगढ। सुमेरपुर पंचायत समिति के 29 ग्राम पंचायत मुख्यालयों पर मतदान दल पहुंच गए हैं। सुरक्षा की दृष्टि से कडे बंदोबस्त किए गए हैं। बाली अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक एवं प्रभारी सुरेशचंद्र पंडया ने बताया कि इन चुनावों में बाली उप अधीक्षक मोहनलाल, सुमेरपुर उप अधीक्षक पूरणसिंह भाटी एवं जोधपुर के आरएसी बटालियन के उप अधीक्षक भंवरलाल मुंडेल सहित क्षेत्र के थाना प्रभारी तैनात रहेंगे। थाना प्रभारी ताराराम बैरवा ने बताया कि सोमवार को संवेदनशील एवं अति संवेदनशील क्षेत्रों का दौरा कर जायजा लिया। वही बसंत में अतिरिक्त सुरक्षा केन्द्र बनाया गया है।
मतदान केन्द्रों पर पहुंचे चुनावकर्मी,सोजत । दूसरे चरण का मतदान कराने के बाद मतदान दलों ने सोजत पहुंच राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में मतदान सामग्री जमा कराई। बाद में नई सामग्री व मतपेटियां लेकर तीसरे चरण का मतदान कराने के लिए रवाना हो गए। उपखंड अघिकारी भागीरथ विश्नोई व तहसीलदार राजेश डागा ने जोनल मजिस्ट्रेट्स की बैठक लेने के बाद मतदान दलों को जैतारण व मारवाड जंक्शन समिति क्षेत्रों के लिए रवाना किया। अपने-अपने मतदान केन्द्र पहुंचने के बाद वहां व्यवस्थाओं को अंतिम रूप दिया।